top of page

कौन है श्राद्ध का सच्चा अधिकारी?

10 Oct 2023

पूर्वजों के प्रति अपनी श्रद्धा को व्यक्त करने की क्रिया का नाम है श्राद्ध

हमारे पूर्वज अपने पितरों में इतनी श्रद्धा रखते थे कि मरने के बाद भी उन्हें याद और उनके सम्मान में यथायोग्य दान - पुण्य  रूपी सेवा किया करते थे। अपने पितरों के प्रति यही श्रद्धान्जलि ही कालांतर में "श्राद्ध" कर्म के रूप में मनाई जाने लगी।


श्रद्धा तो आज के लोग भी रखा करते हैं मगर मूर्त(जीवीत) माँ बाप में नहीं अपितु मृत माँ - बाप में। माँ - बाप के सम्मान में जितने बड़े आयोजन आज रखे जाते हैं , शायद ही वैसे पहले भी रखे गए हों। फर्क है तो सिर्फ इतना कि पहले जीते जी भी माँ - बाप को सम्मान दिया जाता था और आज केवल मरने के बाद दिया जाता है।


श्रद्धा वही फलदायी होती है जो जिन्दा माँ - बाप के प्रति हो अन्यथा उनके मरने के बाद किया जाने वाला श्राद्ध एक आत्मप्रवंचना( दिखावा) से ज्यादा कुछ नहीं होगा।  जो मूर्त माँ - बाप के प्रति श्रद्धा रखता है , वही मृत माँ - बाप के प्रति "श्राद्ध" कर्म करने का सच्चा अधिकारी भी बन जाता है।


पितरों के समान हैं ये वृक्ष, पक्षी, पशु और जलचर


पीपल का वृक्ष- पीपल का वृक्ष बहुत पवित्र है। एक ओर इसमें जहां भगवान विष्णु का निवास है वहीं यह वृक्ष रूप में पितृदेव है। पितृ पक्ष में इसकी उपासना करना विशेष शुभ होता है।


बेल का वृक्ष- यदि पितृ पक्ष में शिवजी को अत्यंत प्रिय बेल का वृक्ष लगाया जाय तो अतृप्त आत्मा को शान्ति मिलती है। अमावस्या के दिन शिव जी को बेल पत्र और गंगाजल अर्पित करने से सभी पितरों को मुक्ति मिलती है। इसके अलावा, तुलसी, के वृक्ष की भी पूजा करना चाहिए।


कौआ- कौए को पितरों का आश्रय स्थल माना जाता है। श्राद्ध पक्ष में कौओं का बहुत महत्व माना गया है। इस पक्ष में कौओं को भोजन कराना अर्थात अपने पितरों को भोजन कराना माना गया है। शास्त्रों के अनुसार कोई भी क्षमतावान आत्मा कौए के शरीर में स्थित होकर विचरण कर सकती है।


हंस- पक्षियों में हंस एक ऐसा पक्षी है जहां देव आत्माएं आश्रय लेती हैं। यह उन आत्माओं का ठिकाना हैं जिन्होंने अपने ‍जीवन में पुण्यकर्म किए हैं और जिन्होंने धर्म -नियम का पालन किया है। कुछ समय तक हंस योनि में रहकर आत्मा अच्छे समय का इंतजार कर पुन: मनुष्य योनि में लौट आती है या फिर वह देवलोक चली जाती है। हो सकता है कि हमारे पितरों ने भी पुण्य कर्म किए हों।


गरुड़- भगवान गरुड़ विष्णु के वाहन हैं। भगवान गरुड़ के नाम पर ही गरुढ़ पुराण है जिसमें श्राद्ध कर्म, स्वर्ग नरक, पितृलोक आदि का उल्लेख मिलता है। पक्षियों में गरुढ़ को बहुत ही पवित्र माना गया है। भगवान राम को मेघनाथ के नागपाश से मुक्ति दिलाने वाले गरूड़ का आश्रय लेते हैं ।


कुत्ता- कुत्ते को यम का दूत माना जाता है। दरअसल कुत्ता एक ऐसा प्राणी है, जो भविष्‍य में होने वाली घटनाओं और  (सूक्ष्म जगत) की आत्माओं को देखने की क्षमता रखता है। कुत्ते को रोटी देते रहने से पितरों की कृपा बनी रहती है।


गाय- जिस तरह गया में सभी देवी और देवताओं का निवास है उसी तरह गाय में सभी देवी और देवताओं का निवास बताया गया है। दरअसल मान्यता के अनुसार 84 लाख योनियों का सफर करके आत्मा अंतिम योनि के रूप में गाय बनती है। गाय लाखों योनियों का वह पड़ाव है, जहां आत्मा विश्राम करके आगे की यात्रा शुरू करती है।


मछली- भगवान विष्णु ने एक बार मत्स्य का अवतार लेकर मनुष्य जाती के अस्त्वि को जल प्रलय से बचाया था। जब श्राद्ध पक्ष में चावल के लड्डू बनाए जाते हैं तो उन्हें जल में विसर्जित कर दिया जाता है|


नाग- भारतीय संस्कृति में नाग की पूजा इसलिए की जाती है, क्योंकि यह एक रहस्यमय जंतु है। यह भी पितरों का प्रतीक माना गया है।


पंडित सतीश नागर उज्जैन


ये भी पढ़ें -



bottom of page