
23 Sept 2023
द्वापर युग में राधा जी शक्ति बनकर अवतरित हुई थीं
परम पूज्य श्री आदिशक्ति माताजी निर्मला देवी के अनुसार श्री विष्णु का आठवां अवतार द्वापर युग में श्री कृष्ण रूप में हुआ इस समय श्री महालक्ष्मी राधा जी के रूप में श्री कृष्ण की शक्ति बनकर अवतरित हुई। 'रा' अर्थात शक्ति व 'धा' अर्थात धारण करना। अतः राधा का अर्थ हुआ शक्ति को धारण करने वाली (श्री माताजी - 'सृजन')
अपने शैशवकाल में राधा और कृष्ण रासलीला किया करते थे। रास (राक्स) अर्थात ऊर्जा के साथ, रास परमात्मा की शक्ति के साथ घनिष्ठता अभिव्यक्त करने वाली लीला है। यह सहज योग का खेल था, परमेश्वरी चैतन्य मंडल (आभा) का खेल।
श्री माताजी कहती है कि श्री राधे रानी कृष्ण की आल्हाददायिनी शक्ति है। आल्हाद का अर्थ अत्यंत व्यापक है, जिसके सही अर्थ को आत्मसाक्षात्कारी व्यक्ति ही समझ सकता है जब व्यक्ति अच्छी-बुरी, सही-गलत किसी भी परिस्थिति में आनंद की अवस्था में स्थित रहता है, अत्यंत प्रेममय हो जाता है तथा जीवन को प्रतिपल उत्सव की भांति जीने लगता है यही स्थिति आल्हाद की स्थिति होती है। जिसे सहज योग में श्री माताजी ने 'निरानंद' कहा है ।
परमपिता व आदिशक्ति मां ने इस सृष्टि का निर्माण आनंद के लिए किया है। निराशा, नीरसता, उदासी अथवा अत्यधिक गंभीरता परमात्मा की इच्छा के विरुद्ध की स्थितियां है। इन्हीं स्थितियों को श्री कृष्ण व राधेरानी अपनी लीलाओं द्वारा गोप- गोपियों के जीवन से सहज ही दूर करते हैं। श्री राधाजी की उपस्थिति में ही हमें श्री कृष्ण के अत्यंत चंचल, प्रेममय नृत्य संगीत में डूबे, नटखट व आनंदमय स्वरूप के दर्शन होते हैं उनके बाद की लीलाओं में नहीं।
अतः कृष्ण का भक्तियोग, ज्ञानयोग व कर्मयोग उन ज्ञानियों के लिए तथा राजनीतिज्ञों के लिए है जो उन्हें द्वारिकाधीश श्री कृष्ण के रूप में पूजते हैं। राधा-कृष्ण के भक्तों के लिए तो बस आनंदयोग है। इसी आनंद योग के सहारे आप सहज ही अनन्य भक्ति का आशीर्वाद प्राप्त कर लेते हैं।
इसके साथ ही श्री राधाजी का अवतरण दर्शाता है, कि किस प्रकार मनुष्य के जीवन में शनैः-शनैः परिवर्तन आया। सीता के युग की तुलना में राधा जी का जीवन निश्चित रूप से समाज के धर्मांधतापूर्ण विचारों से आगे बढ़ने के लिए लगाई गई मेख (खूंटी) है। बिना विधिवत सांसारिक विवाह के भी राधा जी के प्रति श्री कृष्ण के प्रेम तथा सम्मान को गौरवान्वित किया गया जबकि श्री राम जी वैध पत्नी होते हुए भी श्री सीताजी को जनसमर्थन नहीं दिया गया।
(श्री माताजी - 'सृजन' से साभार)
अतः प्रत्येक जागृत व्यक्ति को अपने भीतर आदिशक्ति श्री राधाजी की आनंदमई प्रतिमूर्ति की स्थापना अवश्य करनी चाहिए विशेषतः स्त्रियों को ताकि वे अपने परिवार व समाज में आल्हाद को जागृत कर सके तथा सहज आनंदमय व सुंदर वातावरण का निर्माण हो सके।
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