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इन पांच कारणों से होती है पीपल की पूजा, लेकिन इस समय भूलकर न जाएं पीपल के पास

8 Oct 2022

जानें क्यों खास है पीपल और पूजा से क्या हैं लाभ

सनातन धर्म में पीपल के वृक्ष को बहुत पवित्र माना जाता है। मान्यता है कि पीपल में सभी देवी-देवताओं का वास होता है और इसकी पूजा करने से कई तरह के लाभ होते हैं और शनिदोष से भी मुक्ति मिलती है। इसलिए धार्मिक क्षेत्र में पीपल को देव वृक्ष की पदवी दी गई है। पीपल की पूजा कई अवसरों पर की जाती है, चाहें फिर वह अमावस्या हो या पूर्णिमा।

पीपल के वृक्ष में भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का भी वास माना गया है

इसलिए पीपल की पूजा करने से न केवल पुण्य की प्राप्ति होती है बल्कि पितरों का भी आशीर्वाद मिलता है। वैज्ञानिकों ने भी इस वृक्ष को अनूठा बताया है, जो 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है, जो मनुष्यों के लिए बहुत जरूरी है। पीपल के नीचे महात्मा बुद्ध से लेकर कई अन्य ऋषि-मुनियों ने ज्ञानार्जन किया है।


आइए जानते हैं किन कारणों से पीपल की पूजा की जाती है….


पुराणों में पीपल का महत्व


स्कंद पुराण में पीपल के वृक्ष के बारे में बताया गया है कि


मूले विष्णु: स्थितो नित्यं स्कन्धे केशव एव च।

नारायणस्तु शारवासु पत्रेषु भगवान् हरि:।।

फलेऽच्युतो न सन्देह: सर्वदेवै: समन्व स एवं विष्णुद्र्रुम एव मूर्तो महात्मभि: सेवितपुण्यमूल:।

यस्याश्रय: पापसहस्त्रहन्ता भवेन्नृणां कामदुघो गुणाढ्य:।।


अर्थात

पीपल के जड़ में भगवान विष्णु, तने में केशव, शाखओं में नारायण, पत्तों में भगवान हरि और फलों में सभी देवता निवास करते हैं। पीपल का वृक्ष भगवान विष्णु स्वरूप है। महात्मा इस वृक्ष की सेवा करते हैं और यह वृक्ष मनुष्यों के पापों को नष्ट करने वाला है। पीपल में पितरों और तीर्थों का निवास होता है।


पीपल की पूजा मिलती है शनि दोष से मुक्ति


महर्षि दधीचि के पुत्र पिप्पलाद ऋषि थे। पिप्पलाद का शाब्दिक अर्थ है पीपल के पेड़ के पत्ते खाकर जीवित रहने वाला। महर्षि दधीचि ने संसार के हित में अपने शरीर को त्यागकर देवराज इंद्र को हड्डियों का दान कर दिया था। तब विश्वकर्मा ने दधीचि की हड्डियों से व्रज नामक अस्त्र बनाया, जो काफी शक्तिशाली था। महर्षि दधीचि की पत्नी को जब इसके बारे में पता चला तो उनको काफी दुख हुआ और सती होने के लिए निकल पड़ीं। देवताओं ने उनको काफी रोका लेकिन वह नहीं मानीं। उस समय महर्षि दधीचि की पत्नी गर्भवती थीं। उन्होंने अपने गर्भ से बच्चे को निकालकर पीपल के वृक्ष के नीचे रख दिया था और फिर सती हो गईं। बच्चा पीपल के पेड़ के नीचे ही पला-बड़ा, जिससे उनका नाम पिप्पलाद पड़ा। साथ ही उन्होंने पीपल के पेड़ के नीचे ही कठोर तपस्या भी की थी। पिप्पलाद ऋषि के प्रभाव से ही पीपल को आशीर्वाद प्राप्त है कि जो इस देव वृक्ष की सेवा और पूजा करेगा। उनको पुण्य फल की प्राप्ति होगी और शनि दोष से मुक्ति भी मिलेगी। दरअसल जब पिप्पलाद ऋषि को पता चला कि शनि दोष के कारण ही उनकी पिता की जान गई थी तब उन्होंने ब्रह्माजी के आशीर्वाद से ब्रह्मदंड की प्राप्ति की थी और शनिदेव की डंडे से पिटाई की थी। इसी वजह से पीपल की पूजा करने से शनिदोष से मुक्ति मिलती है।


भगवान विष्णु का स्वरूप है पीपल


भागवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि ‘वृक्षों में सर्वोत्तम मैं पीपल हूं’। साथ ही पीपल को ही भगवान विष्णु का स्वरूप भी बताया गया है और जहां भगवान विष्णु होंगे, वहां लक्ष्मी स्वयं मौजूद होंगी। पीपल की महत्ता इससे ही पता चलती है कि भगवान कृष्ण ने पीपल के वृक्ष के नीचे ही गीता का ज्ञान दुनिया को दिया था। इसलिए पीपल की पूजा करने से भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है और सभी कार्य पूरे होते हैं।


देवी-देवताओं का मिलता है आशीर्वाद


ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, हर रोज पीपल के वृक्ष के पूजा करनी चाहिए, क्योंकि अलग-अलग दिन अलग देवी-देवताओं का वास होता है। इससे न केवल सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है बल्कि अक्षय पुण्य की भी प्राप्ति होती है। पीपल की पूजा करने के बाद परिक्रमा करने से सभी तरह के पाप भी नष्ट हो जाते हैं।


पितृ दोष होता है दूर


पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पीपल की पूजा करना सर्वोत्तम माना गया है। साथ ही उनका आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पीपल के पौधे लगाने चाहिए, ऐसा करने से चारों तरह सकारात्मक वातावरण बना रहता है। गीता में भगवान कृष्ण ने पेड़ों में खुद को पीपल बताया है इसलिए पीपल के पेड़ लगाने से पुण्य फल की प्राप्ति भी होती है और पीपल की हर रोज पूजा करने पितृ दोष से भी मुक्ति मिलती है।


शनि साढ़ेसाती से मिलती है मुक्ति


शनिवार के दिन पीपल की पूजा करना काफी लाभदायक माना जाता है। माना जाता है कि पीपल पर हमेशा शनि की छाया रहती है, जिससे इसकी पूजा से शनि दोष दूर रहता है। शनिवार के दिन पीपल की जड़ में जल चढ़ाने व दीपक जलाने से शनि से संबंधित कष्टों का निवारण रहता है। बताया जाता है कि जिस व्यक्ति पर शनि की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही होती है, उनको पीपल का पूजन व परिक्रमा करनी चाहिए। ऐसा करने से शनि महादशा से मुक्ति मिलती है।


इस समय न करें पीपल की पूजा


शास्त्रों में बताया गया है कि सूर्योदय से पहले कभी भी पीपल की पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि इस समय धन की देवी लक्ष्मी की बहन अलक्ष्मी का वास होता है। अलक्ष्मी दरिद्रता की देवी मानी जाती हैं और हमेशा गरीबी व जीवन में परेशानी लाती हैं। इसलिए सूर्योदय से पहले न तो पीपल की पूजा करनी चाहिए और न ही इस वृक्ष के पास जाना चाहिए, ऐसा करने से घर में दरिद्रता चली आती है। हमेशा सूर्योदय के बाद ही पीपल की पूजा करें।


हर रोज दिन में केवल दो बार पीपल पेड़ के नीचे चढ़ा दें ये चीज, देवता से पहले पितृ करेंगे हर मनोकामना पूरी


पीपल पूजा से धरती ही नहीं आसमान से भी मिलती है ये चीज


पीपल वृक्ष की पूजा को शास्त्रों में बहुत ही चमत्कारी परिणाम देने वाला बताया गया है। मान्यता है कि इस वृक्ष में देवी देवताओं का वास होता है। पीपल वृक्ष की शनिवार के दिन विशेष पूजा करने से व्यक्ति के सभी संकट दूर होने के साथ धन, समृद्धि, यश, कीर्ति आदि की भी प्राप्ति भी होने लगती है। अगर कोई प्रतिदिन या फिर शनिवार के दिन पीपल वृक्ष का दिन में इन दो समय इस विधि से पूजन करता है तो उसके पूर्वज पित्र प्रसन्न व तृप्त होकर सभी मनोकामनाएं पूरी होने का आशीर्वाद देते हैं।


जानें कैसे और किस समय करें पीपल वृक्ष की पूजा।


ऐसे करें पीपल वृक्ष का पूजन

प्रतिदिन या शनिवार के दिन सूर्योदय के कुछ समय पूर्व एवं सूर्यास्त के तुरंत बाद अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की कामना से दोनों ही समय पीपल वृक्ष के पास जाकर पहले सरसों के तेल का एक दीपक व सुंगंधित धुप जलावें, फिर हल्दी, कुमकुम, चावल, पुष्प से पूजन कर शक्कर मिला मीठा जल एक लोटा चढ़ावें। जल चढ़ाने के बाद थोड़ा सा शक्कर या गुड़ का प्रसाद पीपल की जल में चढ़ा दें। अब पीपल पेड़ की 11 परिक्रमा पित्रों का आशीर्वाद प्राप्त हो इस भाव से करें। उक्त क्रम दोनों समय करना है, कुछ ही दिनों में लाभ दिखाई देने लगेगा।


पीपल पूजा के लाभ


1- शनिवार को पीपल वृक्ष की पूजा करने से अपार सुख समृद्धि मिलती है।

2- पीपल वृक्ष की हर रोज विशेष पूजा करने से अपार धन वैभव की प्राप्ति होती है।

3- पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर पूजा करने के बाद श्री हनुमान चालीसा का पाठ करने वाले को घोर संकटो से मुक्ति मिलती है।

4- पीपल के वृक्ष के नीचे मीठा जल चढ़ाने के बाद सरसों के तेल का दीपक जलाकर 7 परिक्रमा करने से मनचाही इच्छा पूरी होती है।

5- विशेषकर अमावश्या तिथि को पीपल के वृक्ष के नीचे दीपक जलाकर पंच मेवा (पांच प्रकार की मिठाई) अर्पित करने से पितृ दोष में मुक्ति मिलती है।


शनिवार को ऐसे करें पीपल की पूजा, कभी नहीं होगी पैसों की किल्लत

शनिवार को ऐसे करें पीपल की पूजा, कभी नहीं होगी पैसों की किल्लत

पीपल के पेड़ को हिंदू धर्म में शुभ माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, पीपल में देवताओं का वास होता है और शनिवार के दिन इसकी पूजा का विशेष महत्व है। मान्यताओं के अनुसार, शनिवार के दिन सुबह पेड़ में जल...


पीपल के पेड़ को हिंदू धर्म में शुभ माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, पीपल में देवताओं का वास होता है और शनिवार के दिन इसकी पूजा का विशेष महत्व है। मान्यताओं के अनुसार, शनिवार के दिन सुबह पेड़ में जल अर्पित करने से मन को शांति प्राप्ति होती है। शनिवार को पीपल के पेड़ में जल चढ़ाने के साथ इसकी परिक्रमा करना भी शुभ माना गया है।


मान्यता है कि पीपल के पेड़ की पूजा खासतौर पर शनि दोष को दूर करने के लिए की जाती है। कहते हैं कि पीपल के पेड़ की पूजा से शनि देव प्रसन्न होते हैं। इसके साथ ही आर्थिक परेशानियां भी दूर होती हैं। अगर आप भी आर्थिक परेशानी का सामना कर रहे हैं तो शनिवार को ये उपाय कर सकते हैं।


शनिवार को सरसों के तेल का दीपक-


शनिवार की शाम को शनिदेव की विधि-विधान से पूजा करें। इसके बाद पीपल के पेड़ के नीचे सरसों के तेल का दीपक जलाएं। अब पीपल के कुछ पत्तों को घर ले आएं और इन्हें गंगाजल से धो लें। अब पानी में हल्दी मिलाकर एक गाढ़ा घोल तैयार कर लें। इसके बाद दाएं हाथ की अनामिका अंगुली से इस घोल को पीपल के पर ह्रीं लिखें। मान्यताओं के अनुसार, पीपले के पत्ते की पूजा करने से शनिदेव प्रसन्न होते हैं और वह मनोकामनाओं को पूरा करते हैं।


हर शनिवार को बदलें पत्ता-


ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, पूजन के बाद इस पत्ते को पर्स या तिजोरी में रखना चाहिए। हर शनिवार को पुराने पत्ते को किसी मंदिर में चढ़ा दें और विधि-विधान से पूजन के बाद नया पत्ता फिर से पर्स या तिजोरी में रखें।


रविवार को भूलकर भी नहीं करनी चाहिए पीपल की पूजा, नहीं तो घर में आएगी दरिद्रता


रविवार के दिन पीपल वृक्ष की पूजा नहीं करनी चाहिए,


आइये जानें इसका महत्त्व और पूजा विधि.


हिन्दू धर्म में पीपल के वृक्ष को सबसे पवित्र माना गया है. इस वृक्ष की महत्ता के बारे में स्वयं भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि- “अश्वत्थ: सर्ववृक्षाणाम, मूलतो ब्रह्मरूपाय मध्यतो विष्णुरुपिणे, अग्रतः शिवरूपाय अश्वत्थाय नमो नमः.”


इसका मतलब है कि भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि “मैं वृक्षों में पीपल हूं. जिसके जड़ में ब्रह्मा जी, तने में विष्णु जी और वृक्ष के अग्र भाग या पत्तियों में भगवान शिव साक्षात् रूप में विराजमान रहते हैं.”


वहीँ स्कंद पुराण में भी “पीपल के जड़ में भगवान विष्णु, तने में केशव अर्थात श्रीकृष्ण, डालियों या शाखाओं में नारायण और फलों में समस्त देवताओं के वास होने की बात कही गयी है.” पीपल के वृक्ष में सभी देवताओं के वास के बावजूद भी पीपल के वृक्ष की पूजा रविवार को नहीं की जाती है. क्योंकि रविवार के दिन पीपल की पूजा करने पर मनुष्य को इसके गंभीर परिणाम भोगने पड़ते हैं.


रविवार को इसलिए नहीं करनी चाहिए पीपल की पूजा.


रविवार को पीपल की पूजा न करने के पीछे एक कथा प्रचलित है. उस कथा के मुताबिक एक बार माता लक्ष्मी और उनकी बहन दरिद्रा विष्णु भगवान के पास गईं और उनसे बोलीं कि हे जगत के पालनहार कृपा करके आप हमें भी रहने के लिए कोई स्थान दे दीजिए. इस पर भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी और उनकी बहन दरिद्रा को पीपल के वृक्ष में वास करने का स्थान दिया. इस तरह से दोनों बहनें पीपल के वृक्ष में निवास करने लगीं.


एक बार जब भगवान विष्णु ने माता लक्ष्मी से विवाह करने का प्रस्ताव रखा तो माता लक्ष्मी ने भगवान को मना कर दिया. क्योंकि माता लक्ष्मी की बहन दरिद्रा का विवाह नहीं हुआ था. माता लक्ष्मी बहन के विवाह के बाद ही भगवान से विवाह कर सकती थीं. इस पर जब भगवान विष्णु ने दरिद्रा से पूछा कि “वो कैसा वर चाहती हैं?” तो दरिद्रा बोलीं कि “ वह ऐसा पति चाहती हैं कि जो कभी पूजा-पाठ न करे और उनका पति ऐसे स्थान पर उन्हें रखे कि जहां पर कोई पूजा-पाठ भी न करता हो.”


इस तरह से दरिद्रा के मांगे गए वरदान के मुताबिक भगवान विष्णु ने दरिद्रा का विवाह ‘ऋषि’ से करा दिया. विवाह के बाद भगवान विष्णु ने दरिद्रा और उसके पति ऋषि को अपने निवास स्थान पीपल में रविवार के दिन निवास करने का स्थान दे दिया.


इस तरह से रविवार के दिन पीपल में देवताओं का वास न होकर दरिद्रा का वास होता है. इसीलिए रविवार के दिन पीपल की पूजा नहीं करनी चाहिए क्योंकि पूजा करने पर दरिद्रा खुश होकर पूजा करने वाले के घर चली जाती हैं.

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