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नित्य पूजनपाठ में दुर्गासप्तशती के महत्व

28 Jun 2023

गीताप्रेस की किताब पर आधारित लेख

दैनिक मालवा हेराल्ड। तंत्रदुर्गासप्तशती के बीजमंत्र अपने आप में अद्भुत शक्तियों के भंडार हैं। इन बीजमंत्रों में से कामना के अनुसार साधक कोई भी बीजमंत्र साधना के लिये चुन कर जप आदि कर सकते हैं। इसके अलावा यदि 'दुर्गासप्तशती के श्लोक मंत्रों की साधना करनी है, तो जिस श्लोक मंत्र की साधना करनी है, उसके बीजमंत्र का सम्पुट देकर भी जप करने की परम्परा है। स्पष्टतः केवल, बीजमंत्र, केवल श्लोकमंत्र तथा बीजमंत्र सम्पुटित श्लोकमंत्र के रूप में तीन प्रकार से जप और उनसे विधि के अनुसार हवन आदि करके साधना की जाती है।


साधना के समय दीपक की ज्योति को भगवती का प्रतीक मानकर प्रत्येक श्लोकमंत्र या बीजमंत्र के जप के पश्चात् ज्योति को प्रणाम करते हुए निश्चित संख्या तक जप करना चाहिये !


यहां तंत्रदुर्गासप्तशती के कुछ सिद्ध बीजमंत्रों और उनके श्लोकमंत्रों का सामान्य विधि के साथ सदियों से प्रचलित साधना का उल्लेख किया जा रहा है


नोट– दुर्गासप्तशती का अनुचित उपयोग आपको स्वयं के जीवन में हानि पहुंचा सकता है, कृपया सावधानी पूर्वक गुरु आदेश में ही स्तुति करें -


दुर्गासप्तशती के प्रत्येक श्लोकमंत्र से पूर्व कामबीज क्लीं का संपुट देकर ४१ दिन तक प्रतिदिन तीन बार सम्पूर्ण सप्तशती का पाठ करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। इसी कामबीज का सम्पुट देकर २१ दिन तक प्रतिदिन १२ बार पाठ करने से वशीकरण की सिद्धि होती है।


सप्तशती के प्रत्येक श्लोक मंत्र के साथ श्रीं बीज का सम्पुट देकर ४९ दिन तक प्रतिदिन १२ बार पाठ करने से अनन्त लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। वाग्बीज ऐं का सम्पुट देकर सप्तशती का 100 बार पाठ करने से विद्या की प्राप्ति होती है।


श्रीसूक्त के मंत्र -


कां सोस्मितां हिरण्यप्राकारमाद्रां ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीम् ।

पद्मे स्थितां पद्मवर्णां तामिहोपह्वये श्रियम् ॥


का संपुट देकर सप्तशती का पाठ करने से लक्ष्मी की प्राप्ति होती है।

दुर्गासप्तशती के प्रत्येक श्लोक के पूर्व-


एवमुक्त्वा समुत्पत्य साऽऽरूढा तं महासुरम् । पादेनाक्रम्य कण्ठे च शूलेनैनमताडयत् ।।


का संपुट देकर पाठ करने से मारण की सिद्धि (शत्रुविनाश) होती है।


सप्तशती के श्लोकमंत्र -


ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा ।

बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छति ।।


का प्रत्येक श्लोकमंत्र के साथ सम्पुट देकर पाठ करने से तुरन्त संमोहन होता है। इसी प्रकार -


रोगानशेषानपहंसि तुष्टा रुष्टा तु कामान् संकलानभीष्टान् ।

त्वामाश्रितानां न विपन्नराणांत्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ।।


का सम्पुट देकर सप्तशती का पाठ करने से समस्त रोगों का विनाश होता है ।


इत्युक्ता सा तदा देवी गम्भीरान्तः स्मिता जगौ ।

दुर्गा भगवती भद्रा यवेदं धार्यते जगत् ।।


श्लोकमंत्र का सम्पुट देकर सप्तशती का पाठ करने से वाणी की विकृति (तुतलाना, हकलाना आदि) का नाश होता है तथा विद्या की प्राप्ति होती है।


भगवत्या कृतं सर्वं न किचिदवशिष्यते।

यदयं निहतः शत्रुरस्माकं महिषासुरः ।।

यदि चापि वरो देवस्त्वयास्माकं महेश्वरि ।

संस्मृता त्वं नो हिंसेथाः परमापदः ।।

वृद्धयेऽस्मत्प्रसन्ना त्वं भवेथाः सर्वदाम्बिके ।

यश्च मर्त्यः स्तवैरेभिस्त्वां स्तोष्यत्यमलानने ।

तस्य वित्तर्द्धिविभवंर्धनदारादिसम्पदाम् ।।

वृद्धयेऽस्मत्प्रसन्ना त्वं भवेथा: सर्वदाम्बिके ।।


इस ११२ अक्षर वाले महामंत्र का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। इसी प्रकार-


देवि प्रपन्नार्तिहरे प्रसीद प्रसीद मातर्जगतोऽखिलस्य । प्रसीद विश्वेश्वरि पाहि विश्वं त्वमीश्वरी देवि चराचरस्य ।।


का कामना की गुरुता के अनुसार लक्ष, दशसहस्र या एक सहस्र पाठ करने से कामनाओं की पूर्ति होती है। इनके अलावा सप्तशती के कुछ अन्य प्रचलित सिद्ध बीजमंत्र और श्लोकमंत्र निम्नानुसार हैं-


क्रमानुसार बीज मंत्र–


(१) सामूहिक कल्याण के लिये  – ॐ ऐं दों नमः


(२) भय विनाश के लिये  – ॐ ऐं प्रें नमः


(३) विश्व रक्षा के लिये  – ॐ ऐं यां नमः


(४) विश्व के अभ्युदय के लिये  – ॐ ऐं म्व्रं नमः


(५) विपत्तियों के नाश के लिये  – ॐ ऐं श्रों नमः


(६) विश्वके पाप-ताप विनाश हेतु  – ॐ ऐं व्रूं नमः


(७) विपत्ति-नाशके लिये  – ॐ ऐं ग्लौं नमः


(८) विपत्तिनाश एवं शुभ के लिये  – ॐ ऐं क्ष्म्ल‌्री‌ं नमः


(९) भयविनाश के लिये  –


(क) ॐ ऐं श्रू्ं नमः

(ख) ॐ ऐं इं नमः

(ग) ॐ ऐं जुं नमः


क्रमानुसार श्लोक मंत्र–


१. देव्या यया ततमिदं जगदात्मशक्त्या

निश्शेषदेवगणशक्तिसमूहमूर्त्या।

तामम्बिकामखिलदेवमहर्षिपूज्यां

भक्त्या नताः स्म विदधातु शुभानि सा नः ||


२. यस्या: प्रभावमतुलं भगवाननन्तो

ब्रह्मा हरश्च न हि वक्तुमलं बलं च ।

सा चण्डिकाखिलजगत्परिपालनाय

नाशाय चाशुभभयस्य मतिं करोतु ॥


३. या श्रीः स्वयं सुकृतिना भवनेष्वलक्ष्मीः

पापात्मनां कृतधियां हृदयेषु बुद्धिः ।

श्रद्धा सतां कुलजनप्रभवस्य लज्जा

तां त्वां नताः स्म परिपालय देवि विश्वम् ॥

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