4 Oct 2023
क्या हैं पिंड, बीज,कर्तरी,मंत्र, माला मंत्र?
वर्णमाला के 'अ' से लेकर 'क्ष' पचास अक्षरों को मातृका कहते हैं। इन मातृका वर्णों से ही मन्त्रों का निर्माण हुआ है।
'शक्तिस्तु मातृका ज्ञेया सा च ज्ञेया शिवात्मिका'
एक अक्षर वाले को 'पिण्ड़' संज्ञा कही गई है एवं दो अक्षर की "कर्तरी', तीन अक्षर से नौ अक्षर तक के मन्त्रों को 'बीज' मन्त्र कहा जाता है, दस अक्षर से बीस अक्षर तक का मन्त्र नाम होता है, एवं बीस अक्षर से अधिक अक्षर संख्या वाले मन्त्रों को 'माला मन्त्र' कहा गया है।
मन्त्र के भाग
मूलमन्त्र - इसके आरंभ बीज मन्त्रादि जो होते हैं (यथा- ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं भू र्भुवः स्वः इत्यादि) उन्हें मन्त्र का शिर कहा गया है। शिर के आधार पर हो मन्त्र की कामना का फल बनता है।
मध्य भाग- व्याहती या बीजाक्षर के बाद का शलोक (मन्त्र का मध्य भाग) देवता से संबंधित व कार्य से संबंधित रहता है।
पल्लव: - मन्त्र के अंत में नमः स्वाहा, स्वधा, फट् ठ ठ इत्यादि जो बीते जाते हैं उसी अनुसार मन्त्र जागृति का फल रहता है।
मन्त्र की संज्ञायें
पुरुष- पुरुष देवताओं के मन्त्र पुरुष संज्ञक ती होते ही हैं, परन्तु जिन मन्त्रों के अंत में हूँ, फट, हूं हूँ, ठः ठः इत्यादि होते हैं वे पुरुष संज्ञक है।
स्त्री- रवी देवताओं के मन्त्रस्वी संज्ञक तो कहलाते हैं परन्तु जिसके अन्त में स्वाहा स्वधा का प्रयोग होता है वह भी स्त्री संज्ञक हो जाता है।
नपुंसक- जिस मन्त्र के अंत या आदि में नमः का प्रयोग होता है यह मध्यम संज्ञक अर्थात् नपुंसक कहलाता है। ये मन्त्र अनिष्टकारक कम होते हैं परन्तु निरर्थक नहीं होते हैं। इनमें शरणापत्र भाव अधिक होता है।
पंडित सतीश नागर उज्जैन
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