
29 Aug 2023
भद्रा नक्षत्र का विस्तृत परिचय
मुहूर्त के अंतर्गत भद्रा का विचार मुख्य रूप से किया जाता है क्योंकि यह वास्तव में स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक तथा पाताल लोक में अपना प्रभाव दिखाती है। इसलिए किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए भद्रा वास का विचार किया जाता है।
कौन है भद्रा ?
भद्रा कौन हैं धार्मिक दृष्टिकोण की बात करें तो इसके अनुसार भद्रा भगवान शनिदेव की बहन और सूर्य देव की पुत्री हैं। यह बहुत सुंदर थी लेकिन इनका स्वभाव काफी कठोर था। उनके उस स्वभाव को सामान्य रूप से नियंत्रित करने हेतु उन्हें पंचांग के एक प्रमुख अंग विष्टि करण के रूप में मान्यता दी गई। जब कभी भी किसी शुभ तथा मांगलिक कार्य के लिए शुभ मुहूर्त देखा जाता है तो उसमें भद्रा का विचार विशेष रूप से किया जाता है और भद्रा का समय त्यागकर अन्य मुहूर्त में ही कोई शुभ कार्य किया जाता है। लेकिन यह देखा गया है कि भद्रा सदैव ही अशुभ नहीं होती बल्कि कुछ विशेष प्रकार के कार्यों में इसका वास अच्छे परिणाम भी देता है।
भद्रा की गणना
तिथि, वार, योग, नक्षत्र और करण मुहूर्त के अंतर्गत पंचांग के मुख्य भाग हैं। इनमें करण एक महत्वपूर्ण अंग माना गया है। कुल मिलाकर 11 करण होते हैं, जिनमें से चार करण शकुनि, चतुष्पद, नाग और किंस्तुघ्न अचर होते हैं और शेष सात करण बव, बालव, कौलव, तैतिल, गर, वणिज और विष्टि चर होते हैं। इनमें से विष्टि करण को ही भद्रा कहा जाता है। चर होने के कारण ये सदैव गतिशील होती है। जब भी पंचांग की शुद्धि की जाती है तो उस समय भद्रा को विशेष महत्व दिया जाता है।
भद्रा का वास कैसे ज्ञात किया जाता है
कुम्भ कर्क द्वये मर्त्ये स्वर्गेऽब्जेऽजात्त्रयेऽलिंगे।
स्त्री धनुर्जूकनक्रेऽधो भद्रा तत्रैव तत्फलं।।
जब चंद्रमा मेष, वृषभ, मिथुन और वृश्चिक राशि में होता है तो भद्रा स्वर्ग लोक में मानी जाती है और उर्ध्वमुखी होती है। जब चंद्रमा कन्या, तुला, धनु और मकर राशि में होता है तो भद्रा का वास पाताल में माना जाता है और ऐसे में भद्रा अधोमुखी होती है। वहीं जब चंद्रमा कर्क, सिंह, कुंभ और मीन राशि में स्थित होता है तो भद्रा का निवास भूलोक अर्थात पृथ्वी लोक पर माना जाता है और ऐसे में भद्रा सम्मुख होती है। उर्ध्वमुखी होने के कारण भद्रा का मुंह ऊपर की ओर होगा तथा अधोमुखी होने के कारण नीचे की तरफ। लेकिन दोनों ही परिस्थितियों में भद्रा शुभ प्रभाव लेगी। इसके साथ ही सम्मुख होने पर भद्रा पूर्ण रूप से प्रभाव दिखाएगी।
पौराणिक ग्रथ मुहुर्त्त चिन्तामणि के अनुसार भद्रा का वास जिस लोक में भी होता है वहां भद्रा का विशेष रूप से प्रभाव माना जाता है। ऐसी स्थिति में जब चंद्रमा कर्क राशि, सिंह राशि, कुंभ राशि और मीन राशि में होगा तो भद्रा का वास भूलोक में होने से भद्रा सम्मुख होगी और पूर्ण रूप से पृथ्वी लोक पर अपना प्रभाव दिखाएगी। यही अवधि पृथ्वी लोक पर किसी भी शुभ कार्य को करने के लिए वर्जित मानी जाती है, क्योंकि ऐसे में किए गए कार्य या तो पूर्ण नहीं होते या उनके पूर्ण होने में बहुत अधिक विलंब और रुकावटें आती हैं।
स्वर्गे भद्रा शुभं कुर्यात पाताले च धनागम।
मृत्युलोक स्थिता भद्रा सर्व कार्य विनाशनी।।
संस्कृत ग्रंथ पियूष धारा के अनुसार जब भद्रा का वास स्वर्ग लोक पाताल लोक में होगा तब वह पृथ्वी लोक पर शुभ फल प्रदान करने में सक्षम होगी।
स्थिताभूर्लोस्था भद्रा सदात्याज्या स्वर्गपातालगा शुभा।
मुहूर्त मार्तण्ड के अनुसार जब भी भद्रा भूलोक में होगी तो उसका सदैव त्याग करना चाहिए और जब वह स्वर्ग तथा पाताल लोक में हो तो शुभ फल प्रदान करने वाली होगी।
अर्थात जब भी चंद्रमा का गोचर कर्क राशि, सिंह, कुंभ राशि तथा मीन राशि में होगा तो भद्रा पृथ्वी लोक पर होगी और कष्टकारी होगी। ऐसी भद्रा का त्याग करना श्रेयस्कर होगा।
पंडित सतीश नागर उज्जैन