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एक दशक पुरानी है इन्दौर की झांकी व अखाड़ों की परम्परा

27 Sept 2023

आज भी अविरल जारी है

इन्दौर(हरिहर सिंह चौहान)| गणेश उत्सव की शुरुआत आजादी से पहले स्वतंत्र वीर बालगंगाधर तिलक जी ने थी जिससे  हमारी आस्था और राष्ट्रीय एकता और सद्भावना कभी भी खत्म नहीं हो, उसी विचारधारा को मध्यप्रदेश की उद्योगिक राजधानी व स्वच्छता में अव्वल शहर इन्दौर आज भी निभा रहा है यहां गणेशोत्सव चल समारोह की शुरुआत 1924 में काटन आफ किंग दानवीर सर सेठ हुकुमचंद जी ने लोकमाता अहिल्याबाई होलकर की इस इन्दौर नगरी में की थी जब गणेश विसर्जन चल समारोह बैलगाड़ी से झांकी निकलती थी , वह समय ऐसा था जब कपड़ा मिलों में मजदूरों के परिश्रम व पसीने की कमाई से 6 मिलो की वजह से यह इन्दौर कपड़ों का हब हुआ करता था,आज मिलों को  बंद हुऐ 32 वर्ष हो चुके हैं अब ना वह शोर गुल होता ना भोगे की आवाज ना मिलों की चिमनियों धुआं  निकालता, कितनी बड़ी विडंबना है कि कम से कम 70 प्रतिशत मिल मजदूर संघर्ष करते रहे और अब व दुनिया छोड़ चले गए लम्बी लड़ाई मजदूरों ने लड़ी पर समय के इस भंवर में उनकी आवाज अब खामोश है पर जो नींव  परम्परागत लोगों की एकजुटता के लिए  सदियों पहले सेठ हुकुमचंद जी ने डाली थी वह विरासत मिलों से जुड़े परिवारों द्वारा सहज कर आगे बढ़ाया जा रहा है।



100 वर्षों के इतिहास को वहीं जोश जुनून से अब भी इन्दौर ने कायम रखा हुआ है ,यह बहुत ही गर्व की बात है। इस आधुनिकता के दौर में पहले जैसा गणेश उत्सव पर उल्लास मनोरंजन के कार्यक्रम गीत संगीत कवि सम्मेलन पर्दों पर फिल्में दिखना अब नहीं होता पर अनंत चतुर्दशी की झांकियों का सिलसिला अब भी कायम है, जहां हजारों बल्बो से सुसज्जित झिलमिलाती झांकियों का कारवां इन्दौर की पहचान है वहां पुराने समय में दो तीन दिन पहले से दूरदराज के इलाके से लोग अपनी जगह रोकते थे इन सौ साल के सफ़र में सिर्फ करोना के दो वर्ष ही थे कि चल समारोह नही निकला बाकी अविरल इस का सफर जारी है।



तभी तो हमारी पहचान मिनी मुंबई के नाम से होती है महाराष्ट्र के बाद इन्दौर में ही गणेश उत्सव की अपनी अलग छवि हुआ करती थी समय के साथ उत्सव में वह उल्लास कम जरूर हुआ पर जिस प्रकार मुंबई में अंनत चतुर्दशी पर गणेश विसर्जन चल समारोह में वह नहीं सोता उसी प्रकार इन्दौर भी जागरण करता है उस रात मानों आसमान से देवता भी स्वागत करते हैं रात भी दिन जैसा एहसास करती है। स्वच्छता में अव्वल शहर इन्दौर भारत का सिरमौर है उसी प्रकार व परम्परा संस्कृति विरासत व इतिहास को सहेजने में भी सबसे आगे हैं हमारा इन्दौर इस गणेश विसर्जन चल समारोह में पौराणिक कथाओं पर सनातन संस्कृति व धर्म पर ओर इतिहासिक प्रेरक प्रसंग पर तथा विकासित भारत की बात व सरकार के सकारात्मक प्रयासों का चित्रण इन झांकियों में होता है जो पूरे शहर में शाम से शुरू हो कर पूरी रात घुमती है।



एक समय ऐसा हुआ करता था कि जब यह चल समारोह मशाल व लालटेन की रोशनी में निकला जाता था उस के बाद बल्बो की झिलमिलाती लाइट्स व अब एल ई डी की दूधिया रोशनी में अंनत चतुर्दशी की रात इन्दौर में अंधेरा नहीं होगा क्योंकि प्रथम पूज्य देवो के देव गजानंद गणपति जी का यह विसर्जन चल समारोह है जो प्रकाशमान बन पूरे शहर में सतरंगी छटा बिखरेगा। इसमें खास बात यह होती है इस आधुनिक युग में युवा पीढ़ी के लिए यह समारोह प्रेषित करता है भारतीय संस्कृति से जुड़ने के लिए अब जिम में लोग अपने शरीर को बनाने के लिए जाते हैं पर जो खुशबू हमारी मिट्टी की अखाड़ों में कसरत करने से आंनद की अनुभूति होती थी वह जिम में पसीना बहा कर भी नहीं होती उन्हीं मिट्टी व अखाड़ों में पहलवानी करने वाले लोग भी अपने अपने अखाड़ों की शस्त्र कला करतब शरीर सौष्ठव का प्रर्दशन भी करते हैं जिसमें अब बालिकाएं भी लाठी बनेठी व अस्त्र-शस्त्र से ढोल नगाड़ों की थप पर कलाबाजियां भी इस विसर्जन समारोह का मुख्य आकर्षण रहता है जहां शासन प्रशासन इन्हें पुरस्कृत कर सम्मानित करते हैं यही हमारी आस्था की पहचान है इतनी भीड़भाड़ में बेटियां भी तलवार भाले बनेठी घुमती है जो भारत की प्राचीन कलाओं में हैं, अखाड़ों की असली  पहचान पहलवानों की मेहनत से होती है तभी इस चल समारोह में  यह मिट्टी वाले देशी करतब करते पहलवान उस्ताद व खलीफाओं इस में चार चांद लग जाता है। यह हमारी लोकमाता देवी अहिल्या बाई होलकर जी का पुण्य प्रताप ही है कि यह के लोग लोक संस्कृति व संस्कार को अपनी परम्परा के रूप में अब भी कायम रखें हुऐ हैं।



कितनी भी दिक्कत आये मजदूरों को अर्थव्यवस्था चाहे ठीक नहीं हो पर उनके ठोस दमदार इरादों के आगे यहां सब चीजें बहुत छोटी नज़र आती है वह मेहनतकश मजदूरों के वंशज भी इस विसर्जन चल समारोह के सहयोग में सबसे आगे होते हैं और विघ्न विनाशक गणेश जी इस यात्रा को चल समारोह को निर्विघ्न संपन्नता का आशीर्वाद देते हैं। पूरी रात झिलमिलाती झांकियों का कारवां चलता रहता है, बच्चे जवान बुजुर्ग नाचते गाते मस्ती उल्लास आंनद में आगे बढ़ते रहते हैं दर्शक जो इन्दौरी होने का फर्ज अदा करते हैं वह पूरी रात इन जांबाज मजदूरों की मेहनत का रास देखते हैं इन झिलमिलाती झांकियों के रंग-बिरंगे कारवां को निहारते हैं तभी तो अंनत चतुर्दशी की पूरी रात ढोलक बैंड बाजे डी जे नगाड़ों की गुंज बच्चों के खिलौनों की सीटियां कानों गुंजती है वहीं बुजुर्गो को बचपन की याद दिलाती है चकरी गुब्बारे डमरू बेचने वाले भी बच्चों को  आकर्षित करतें हैं ऐसे  खेल खिलौने जो अब बड़े बड़े माल में जाने पर भी नहीं मिलते है वह यह मिलते हैं, झांकी उत्सव प्रिय शहर वासियों व मेहनतकश मजदूरों का सार्थक प्रयास ही है कि सौ साल पुरानी परम्परा संस्कृति इतिहास को सहेजने हेतू वर्तमान युवा पीढ़ी को जिम्मेदारी निभाने का संदेश भी दे रही हैं।



यह गर्व की बात है कि हम आज भी इन्दौर के इस गणेश विसर्जन चल समारोह में युवा वर्ग की भागीदारी बहुत ज्यादा होती है नये कपोलों को अंकुरित करने हेतु इस तरह के समारोह हमेशा से प्रेरणादायक रहे हैं तभी तो पूरा शासन प्रशासन व समाजिक संस्थान धार्मिक मंदिरों के प्रबंधक सभी धर्मों के अनुयाई इस राष्ट्रीय एकता के  इतिहासिक चल समारोह में जो सदियों से इन्दौर की धरोहर रहा है उसमें पूरा सहयोग करते हैं,तभी तो मध्यप्रदेश के इन्दौर में यह मिल मजदूरों के मनोरंजन व शिक्षा धर्म समाज व राष्ट्र भक्ति जागने का छोटा सा प्रयास आजादी के पहले शुरू हुआ जो आज  परम्परा संस्कृति पर्व हमारी विरासत बन गया है इस अंनत चतुर्दशी चल समारोह की झांकियों व अखाड़ों का 100 वर्षों से ज्यादा पुराना इतिहास आज भी अविरल जारी है परम्परा संस्कृति आज इस आधुनिक युग में भी जीवित हैं इस के लिए पूरे इन्दौर के सभी लोगों का आभार जो आप लोगो ने अपने शहर की विरासत को स्वर्ण अक्षरों में  अंकित कर रखा है।


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