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देव आनंद और गुरु दत्त कैसे बने दोस्त

एक लॉन्ड्री और दो वादों के साथ शुरू हुई बॉलीवुड की बेमिसाल दोस्ती

1940 के दौर में प्रभात स्टूडियो कोल्हापूर से पुणे में शिफ्ट हुआ था। उस समय देशभर से कई लड़के बंबई फिल्मों में अपनी किस्मत आजमाने आते थे। कुछ की चलती, कुछ रह जाते। ऐसे ही देव आनंद भी इसी जमाने में फिल्मी सपने आंखों में लिए मुंबई आए थे। सपना था बड़ा फिल्म स्टार बनना।किस्सा है कि एक फिल्म के सिलसिले में देव आनंद को प्रभात स्टूडियो जाना था। उस इलाके में एक ही लॉन्ड्री थी जहां देव आनंद अपने कपड़े धुलवाया करते थे। उस दिन देव लॉन्ड्री पहुंचे तो उनके कपड़े गायब थे। कोई और चुपके से उठा ले गया था।क्या किया जा सकता था। देव मन मार कर रह गए। दूसरे कपड़े पहनकर स्टूडियो पहुंचे।


शूटिंग का माहौल था। सेट पर कई लोग थे। देव आनंद भी वहां चहलकदमी करने लगे। तभी एक लड़के पर नजर पड़ी। उसने वो ही कपड़े पहने थे, जो लॉन्ड्री से गायब हुए थे। देव आनंद ने अपने कपड़े पहचान लिए। वो उस लड़के के पास पहुंचे। हैलो बोला। लड़के ने भी अनमना सा हैलो बोल कर जवाब दे दिया।


देव आनंद ने फिर कहा- यार, तुम्हारे कपड़े बहुत जबरदस्त लग रहे हैं, कहां से लिए?

लड़के ने उनकी तरफ देखकर जवाब दिया - मेरे नहीं है, लेकिन किसी को बताना मत, आज लॉन्ड्री वाले के यहां गया तो उसने मेरे कपड़े धोए नहीं थे, मुझे वहां ये कपड़े बढ़िया लगे, तो उठा लाया।


देव आनंद मुस्कुरा दिए। लड़के की साफगोई उन्हें पसंद आई। उन्होंने कहा- मैं देव आनंद हूं, चेतन आनंद का छोटा भाई। ये कपड़े मेरे ही हैं।

लड़का सकपका गया। शर्मिंदा भी हुआ। देव ने कहा तुम कपड़े उठा लाए तो मुझे गुस्सा आ रहा था, लेकिन तुमने जिस सच्चाई से ये कहा कि ये तुम्हारे नहीं किसी और के हैं, मेरा गुस्सा जाता रहा। क्या नाम है तुम्हारा?

लड़के ने कहा - गुरु दत्त।


देव ने कहा - तुम मुझे बहुत अच्छे लगे। आज से हम दोस्त हैं। और मेरा वादा रहा, मैं जब भी अपनी पहली फिल्म बनाऊंगा, उसे तुम ही डायरेक्ट करोगे।

गुरु दत्त ने भी भरोसे के साथ जवाब दिया - और मैं भी वादा करता हूं कि मैं जिस पहली फिल्म को डायरेक्ट करूंगा, उसके हीरो तुम रहोगे।


देव आनंद ने अपना वादा निभाया भी। अपने प्रोडक्शन में जब देव आनंद ने पहली फिल्म 'बाजी' बनाई तो उसके डायरेक्टर गुरु दत्त ही थे। हालांकि गुरु अपना वादा नहीं निभा पाए। उन्होंने देव आनंद को लेकर फिल्म सीआईडी तो बनाई, लेकिन उसे अपने असिस्टेंट राज खोसला से डायरेक्ट कराया।


एक लॉन्ड्री और दो वादों के साथ शुरू हुई ये दोस्ती बॉलीवुड की बेमिसाल दोस्ती बनी


गुरु दत्त के लिए सिनेमा व्यवसाय न होकर पैशन था. जिसके लिए वे किसी भी सीमा को पार कर जाते थे. भारतीय सिनेमा में गुरु दत्त ऐसी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे, जिन्होंने फिल्म निर्माण, डायरेक्शन, कोरियोग्राफी और एक्टिंग में अपना लोहा मनवाया. गुरु दत्त का जन्म आज ही के दिन 9 जुलाई 1925 को बेंगलुरु में हुआ था. उनका असली नाम वसंत कुमार शिवशंकर पादुकोण था.


बचपन बेहद गरीबी में गुजरी था


गुरु दत्त का बचपन बेहद गरीबी में बीती थी. बड़ी मुश्किल से पढ़ाई हो सकी. उन्होंने कोलकाता में टेलीकॉम ऑपरेटर की नौकरी की और बाद में वह लौटकर अपने माता-पिता के पास मुंबई आ गए थे| संगीत और कला में रुचि होने के चलते गुरु दत्त ने अपनी प्रतिभा से स्कॉलरशिप हासिल की और उदय शंकर इंडिया कल्चर सेंटर में दाखिला ले लिया, जहां से उन्होंने डांस सीखा. 5 साल तक उदय शंकर से डांस सीखने के बाद गुरु दत्त को पुणे के प्रभात स्टूडियो में बतौर कोरियोग्राफर काम करने का मौका मिला. एक दिन उस समय के महान एक्टर देव आनंद से भेंट हो गई और फिर क्या था, वह फिल्म बनाने और एक्टिंग के क्षेत्र में काम करने लगे. देव आनंद ने दत्त को अपनी नई प्रोडक्शन कंपनी, नवकेतन में निदेशक के रूप में नौकरी की पेशकश की.


गुरु दत्त ने फिल्म उद्योग में अपने करियर की शुरुआत फिल्म हम एक हैं में कोरियोग्राफर के रूप में काम करके की थी. उन्होंने सामाजिक रूप से जागरूक फिल्मों का निर्माण किया, जिनमें प्यासा (1957), कागज के फूल (1960), और बाजी (1951) शामिल हैं. बाजी नवकेतन में बतौर निर्देशक उनकी पहली फिल्म थी. देवानंद की फिल्म 'बाजी' की सक्सेस के बाद गुरु दत्त बतौर निर्देशक अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए.


गीता दत्त से कर ली शादी


फिल्म 'बाजी' के गाने की रिकॉर्डिंग के दौरान गुरु दत्त की गीता दत्त से निगाहें टकराईं. लेकिन दोनों में कोई समानता नहीं थी. गीता शौहरत की बुलंदियों पर थीं तो गुरु दत्त अपनी पहचान तलाश रहे थे. गीता दत्त बिलकुल गुरुदत्त की फिल्मों जैसी थीं डार्क और ब्यूटीफुल. दोनों ने तीन साल के प्रेम के बाद 1953 में शादी कर ली. दोनों के तीन बच्चे हुए. जाने कब गीता-गुरु में दूरियां आ गईं. गुरुदत्त को जानने वालों की मानें तो दोनों में अहम का टकराव था.


गीता से दूरियां बढ़ने के बाद गुरु दत्त के जीवन में वहीदा रहमान आईं. वहीदा जानती थीं कि गुरु दत्त शादीशुदा हैं. इसलिए इस संबंध को उन्होंने कभी नहीं स्वीकारा. इधर, गुरु दत्त की बेचैनी कम नहीं हुई. वह शराब में डूबे रहने लगे.1959 में गुरुदत्त की आई फिल्म 'कागज के फूल'.फ्लॉप रही. गुरु दत्त को इस फिल्म की असफलता ने तोड़ दिया था. गीता उन्हें छोड़ के जा चुकी थीं. अब गुरु दत्त पूरी तरह टूट चुके थे.


1960 में फिल्म 'चौदहवीं का चांद' आई


1960 में गुरु दत्त और वहीदा रहमान की फिल्म 'चौदहवीं का चांद' आई. व्यवसायिक तौर पर ये एक हिट फिल्म थी. इस फिल्म से गुरुदत्त को फौरी तौर पर खुशी मिली. गुरुदत्त पूरी तरह से वहीदा के इश्क में गिरफ्तार हो गए थे, और शायद इस बेचैनी से भी घिर गए कि आखिर वो चाहते किसे हैं, गीता को या वहीदा को? 1962 में अपनी बेचैनी, कशमकश में उलझे गुरु दत्त ने फिर ने एक फिल्म वहीदा रहमान को लेकर 'साहिब बीवी और गुलाम' बनाई|


गीता दत्त बच्चों को लेकर घर से जा चुकी थीं. गुरुदत्त बार-बार आत्महत्या की कोशिश कर रहे थे. उनकी बेचैनी अब और बढ़ चुकी थी. फिर आई वो 10 अक्टूबर 1964 की काली रात जिस रात के काले अंधेरों के आगोश में गुरुदत्त मौत की नींद सो गए थे. कहा जाता है कि उस रात उन्होंने जमकर शराब पी थी. इसके बाद गीता से फोन पर नोकझोंक हुई. काफी ज्यादा नींद की गोलियां खाने के बाद उस रात जो गुरुदत्त सोए तो कभी नहीं उठे.

गुरु दत्त के बेटे अरुण ने यही माना कि उनके पिता की मौत दुर्घटनावश शराब और नींद की गोलियों के मिश्रण से हुई है. गुरु दत्त के छोटे भाई और फिल्‍ममेकर देवी दत्त ने भी हमेशा से इन संभावनाओं को खारिज किया कि उन्‍होंने आत्‍महत्‍या की है. देवी दत्त ने कई बार यह कहा कि उनके भाई को नींद नहीं आने की बीमारी थी. इस कारण वह नींद की दवाइयां लेते थे. इसलिए निश्‍चि‍त तौर पर उनकी मौत दुर्घटनावश शराब और दवाइयों के ओवरडोज से ही हुई होगी.

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